Saturday 28 November 2015

सहिष्णुता बनाम असहिष्णुता

महाबली ये असहिष्णुता नहीं तो और क्या है कि आप मेरे ही पुत्र के विरुद्ध युद्ध के लिए मुझसे ही तलवार माँग रहे हैं? मैं इतनी सहिष्णु नहीं हूँ कि अपने पुत्र का रक्त बहाने और आपकी विजय मंगल की कामना करते हुए आपकी आरती उतारूँ और तिलक लगाऊँ।
बात रवादारी (सहिष्णुता) और अदम-बर्दाश्त (असहिष्णुता) की नहीं है जोधा। बात है बदनामी और मुग़ल सल्तनत के ख़िलाफ़ बग़ावत की। शेख़ू की इस हरकत से पूरी दुनिया में मुग़ल सल्तनत की बदनामी होगी।
मुहब्बत कब से बदनामी और सल्तनत के विरुद्ध बग़ावत हो गयी महाबली?
मल्लिका-ए-हिन्दोस्ताँ ! जब मुग़ल सल्तनत का वलीअहद एक कनीज़ की मुहब्बत की ख़ातिर बादशाह-ए-वक़्त के ख़िलाफ़ तलवार उठा ले और सल्तनत की आन-बान-शान कनीज़ के क़दमों में डाल दे तो मुहब्बत के दावेदार पर बदनामी और सल्तनत से बग़ावत का जुर्म आयद होता है।
लेकिन महाबली, वो हमारा इकलौता बेटा है। आने वाले कल के हिन्दोस्ताँ का मुस्तक़बिल और महाबली। क्या आपको नहीं लगता कि आप उसकी मुहब्बत के ख़िलाफ़ हैं? क्या उसका मुहब्बत करना इतना असहिष्णु है?
बाख़ुदा हम मुहब्बत के दुश्मन नहीं अपने उसूलों के ग़ुलाम हैं। हिन्दोस्ताँ का मुस्तक़बिल चाहे ताराज (अंधकारमय) हो जाए लेकिन तख़्त-ए-तैमूरी की रवादारी में अभी इतनी लोच पैदा नहीं हुई कि किसी नाचीज़ कनीज़ के मल्लिका-ए-हिन्दोस्ताँ बनने के ख़्वाब की ताबीर को सच कर दे।
महाबली ! तो क्या चंगेज़ी वंश कि यही सहिष्णुता है कि बाप-बेटे के अहंकार के विजय का फ़ैसला रक्त के फ़व्वारे से होगा?
मैदान-ए-जंग का यही उसूल है। जंग तुम्हारे बेटे ने चुनी है और जंग आँसू बहा कर नहीं ख़ून बहा ही जीती जाती है।
जीत-हार तो दुश्मनो में हुआ करती है महाबली, बाप-बेटे में नहीं। आप ही थोड़े सहिष्णु बन जाइये और बातचीत से सुलह का कोई रास्ता निकालिये।
सुलह में इतनी ताब नहीं जो जलाल-ए-अकबरी का सामना कर सके। जीत-हार का फ़ैसला तो जंग में होगा लेकिन उससे पहले तुम्हें फ़ैसला करना होगा कि तुम्हें सुहाग चाहिए या बेटा?
मुझे महाबली के तलवार पे अपने बेटे के रक्त का सबूत चाहिए।
मानसिंह सब तैयारी मुकम्मल हो गयी?
जी महाबली।
मैं जंग से पहले आख़िरी बार वलीअहद से मिलना चाहता हूँ। इंतज़ामात किये जाएँ।
जो हुक्म महाबली।
क्या जहाँपनाह ने जंग से पहले ही शिकश्त मान ली जो यूँ रात के अँधेरे में दुश्मन ख़ेमे में तशरीफ़ लाने को मजबूर हुए?
मैं शहंशाह की हैसियत से नहीं एक बाप ही हैसियत से तुमसे मिलने आया हूँ।
झूठ ! शहंशाह बाप का भेष बदल कर मिलने आया है।
शहंशाह रोया नहीं करते।
आपके ये आँसू मेरी मुहब्बत के ज़ख्मों का मदावा नहीं कर सकती। मुझे आपके रवादारी की भीख नहीं चाहिए जहाँपनाह।
मुझे भी तख़्त-ए-ताऊस पर किसी कनीज़ की परछाई नहीं चाहिए।
अनारकली कनीज़ नहीं, मेरी मुहब्बत है। एक वलीअहद की मुहब्बत।
शेख़ू ! जिसे तुम मुहब्बत समझ रहे हो कि वो एक ख़ूबसूरत मौत है।
मौत तो किसी भी सूरत में मिलनी है। चाहे मुहब्बत में मिले या मैदान-ए-जंग में, क्या फ़र्क़ पड़ता है?
फ़र्क़ पड़ता है शेख़ू ! जब वलीअहद इश्क़ में मरने लगें तो तलवार और सल्तनत का ज़वाल (पतन) लाज़िमी है।
कौन सी सल्तनत? वही जो बेटे के मजरूह दिल को हिन्दोस्ताँ समझ कर आपने अपनी फ़तह के झंडे गाड़ने के लिए जीता है?
ये हिन्दोस्ताँ मैंने तुम्हारे लिए जीता है शेख़ू जिसके तख़्त-ए-शाही पर तुम एक कनीज़ को बिठा कर इसे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हो और उस नाचीज़ कनीज़ के लिए तुमने अपने बाप के ख़िलाफ़ तलवार तक उठा लिया है।
मैंने अपने बाप के ख़िलाफ़ नहीं एक ज़ालिम बादशाह के ख़िलाफ़ तलवार उठाया है जो मुहब्बत का दुश्मन है। वैसे, आपके मुग़ल सल्तनत की तब बदनामी नहीं हुई थी जब आपके बहनोई ने आपके ख़िलाफ़ बग़ावत की थी?
आपके मुग़ल सल्तनत की तब बदनामी नहीं हुई थी जब आपके दूध-शरीक भाई ने आपके ख़िलाफ़ बग़ावत की थी?
आपके मुग़ल सल्तनत की तब बदनामी नहीं हुई थी जब आपकी दाई माँ महमइंगा ने आपके ख़िलाफ़ बग़ावत की थी?
आपके मुग़ल सल्तनत की तब बदनामी नहीं हुई थी जब आपने सुजामल मामा की वजह मेरी माँ और अपनी बेग़म जोधा के रिश्ते पर शक किया था?
आपके मुग़ल सल्तनत की बदनामी सिर्फ़ मेरे और अनारकली की मुहब्बत से ही होती है?
क्या तपती रेत पर चलकर बाबा सलीम चिश्ती की दरगाह पर मैंने तुम्हारे पैदा होने की मन्नत इसी दिन के लिए की थी कि तुम दादा बाबर की रूह को शर्मिंदा करो?
आपने औलाद नहीं तख़्त के लिए वारिस माँगा था जहाँपनाह।
शेख़ू ! मेरी रवादारी का इतना नाजायज़ फ़ायदा न उठाओ कि मेरी अदम-बर्दाश्त जवाब दे जाए। शहंशाह-ए-वक़्त से गुस्ताख़ी के एवज़ में तुम्हें फ़ाँसी भी हो सकती है।
एक ज़ालिम बादशाह इससे ज़्यादा किसी को और दे भी क्या सकता है।
शेख़ू...
बेहतर हो कि कल की जंग में हमारी तलवारें हिन्दोस्ताँ के मुस्तक़बिल का फ़ैसला करें। ख़ुदा तुम्हें मैदान-ए-जंग में जलाल-ए-अकबरी से महफूज़ रखे।
जहाँपनाह ! मेरी भी दुआ है कि आप को फ़तह नसीब हो वरना वलीअहद से जंग हारने की सूरत में ता क़यामत आपके मुग़ल सल्तनत की बदनामी होती रहेगी और लोग यही समझते रहेंगे कि बादशाह रवादारी पसंद था और वलीअहद अदम-बर्दाश्त का पैरोकार।
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- नैय्यर