Friday 8 April 2016

AMU का माइनॉरिटी स्टेटस : सरकार की आँख की किरकिरी क्यूँ?




जब सारे देश द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अपने ज़ख्म गिनने में लगे थे तब हैदराबाद के सातवें और आख़िरी निज़ाम नवाब मीर उस्मान अली ख़ान हैदराबाद में 'जामिया उस्मानिया' यानी उस्मानिया यूनिवर्सिटी की बुनियाद रख रहे थे। ब्रिटिश कालीन भारत की ये पहली यूनिवर्सिटी थी जिसमें विज्ञान, कला, साहित्य, अभियांत्रिकी, चिकित्सा, कृषि इत्यादि को पढ़ाने का माध्यम 'उर्दू' था। देश के बँटवारे के वक़्त हैदराबाद रियासत ने अलग रहने का फ़ैसला किया पर इसे सितम्बर 1948 में 'ऑपरेशन पोलो' के ज़रिये दमन कर भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया। निज़ाम के शासन के ख़ात्मे के साथ ही 'उर्दू' में शिक्षा देने के प्रावधान के साथ ही इस विश्वविद्यालय का 'Muslim Character' समाप्त कर दिया गया जो भारतीय संविधान के आर्टिकल 30 की खुली अवमानना है।
जामिया के छात्रों (वर्तमान और पूर्व) और शिक्षक संगठन द्वारा PM नरेंद्र मोदी के दीक्षांत समारोह में आने का विरोध करने की वजह से JMI के साथ भी राजनीति हुई और मामला गरमाया कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया Minority Institution नहीं है, फ़िलहाल जामिया के माइनॉरिटी शिक्षण संस्थान होने का मामला पेंडुलम की तरह है। जामिया की पहचान ही माइनॉरिटी शिक्षण संस्थान के रूप में है और ये जामिया की पहचान और उसका वाजिब हक़ है। तलवार तो लटकी है AMU पर।
देश के बँटवारे के बाद सिखों के खालसा कॉलेज के पाकिस्तान (लहौर) में चले जाने के बाद ये माँग भी उठी थी कि खालसा कॉलेज के बदले AMU सिखों को सौंप दिया जाए। इस माँग के उठने के बाद मौलाना आज़ाद और डॉ. ज़ाकिर हुसैन के हस्तक्षेप के बाद नेहरू जी ने मामले को संभाला और AMU की इंफ़रादियत को बरक़रार रखा। अदालतों में बैठे वो वकील जिन्होंने AMU को 'Minority Status' देने से इंकार किया है उन्हें AMU के इतिहास को फिर से पढ़ लेना चाहिए।
1857 के ग़दर में अंग्रेज़ों द्वारा मुसलमानों के बेहिसाब क़त्ल-व-ग़ारत के बाद सर सैय्यद अहमद ख़ान ने मुसलमानों में तालीमी बेदारी को पैदा करने के लिए 1858 में मुरादाबाद में और 1863 में ग़ाज़ीपुर में स्कूल की बुनियाद रखी। मुसलमानों में साइंटिफ़िक रुझान को पैदा करने और उसे बढ़ाने के लिए उन्होंने 1864 में साइंटिफ़िक सोसाइटी की बुनियाद राखी। इसी सिलसिले को बढ़ाते हुए सर सैय्यद अहमद ख़ान ने अलीगढ़ में मदरसतुल ओलूम मुसलमान-ए-हिन्द की बुनियाद रखी जिसे 1877 से मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज के नाम से जाने जाने लगा। शुरु में ये कॉलेज कलकत्ता विश्वविद्यालय से एफ़िलिएटेड था जो आगे चलकर 1885 में इलाहबाद विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हो गया। महिलाओं के लिए SNDT विश्वविद्यालय खुलने के दशक भर बाद ही 1902 में MAOC में Women's College' की बुनियाद पड़ी जो बाद में मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति बनी और 1920 आते आते ब्रिटिश हुक़ूमत ने इसे 'Central University' का दर्जा दिया और इस तरह मदरसतुल ओलूम AMU के नाम से देश-दुनिया में मशहूर हुआ। AMU को हिन्दुस्तान की पहली Fully Residential University होने का ऐजाज़ हासिल है और इसके लिए चंदे और ज़मीनें देने वालों में 99% मुसलमान हैं। सर सैय्यद के कुछ हिन्दू दोस्तों ने चंदे और ज़मीनें दी हैं मगर मदरसा से यूनिवर्सिटी बनाने तक इसकी आबयारी और परवरिश मुसलमानों ने ही की है और कोर्ट में इंसाफ़ देने का हलफ़ लेकर बैठे मनसफ़ जब ये कहते हैं कि AMU is not an Minority Institution तो आईन की आर्टिकल 30 वहीँ कटघरे में ही बेमौत मर जाती है।
UPA के तत्कालिक अल्पसंख्यक मंत्री (राज्य प्रभार) सलमान ख़ुर्शीद ने वक़्फ़ बोर्ड की ज़मीन पर बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ (यू.पी) और इंदिरा गाँधी नेशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी, अमरकंटक (एम. पी) की तर्ज़ पर तीन नए केंद्रीय अल्पसंख्यक विश्विद्यालय खोलने की बात की थी। इसके तहत मैसूर (कर्णाटक) में टीपू सुल्तान यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, किशनगंज (बिहार) में रफ़ी अहमद क़िदवई यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंसेज़ और अजमेर (राजस्थान) में ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ यूनिवर्सिटी खोलने की योजना थी। शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान की जयंती पर विश्व हिन्दू परिषद और बजरंज दल के उपद्रव और केंद्र सरकार की चुप्पी ने ये साबित कर दिया है कि मैसूर में प्रस्तावित टीपू सुल्तान यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी खोलने में मौजूदा केंद्र सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है इसलिए भाजपा की 'सिस्टर आर्गेनाईज़ेशंस' द्वारा टीपू सुल्तान को देशद्रोही, हिन्दू विरोधी और लूटेरा साबित करने के लिए किये उपद्रव सुनियोजित थे। संघ समर्थित वर्त्तमान सरकार का अल्पसंख्यंकों के प्रति जो रवैय्या और इतिहास है उसे देखते हुए लगता है कि केंद्र सरकार AMU के बाक़ी बचे दो सेंटर्स के अलावा तीन प्रस्तावित अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय खोलने के लिए शायद ही कभी पहल करे।
साथ ही AMU के तीनों सेंटर्स मल्लापुरम (केरल), मुर्शिदाबाद (पश्चिम बंगाल) और किशनगंज (बिहार) को पूर्ण रूप से अल्पसंख्यक विश्विद्यालय का दर्जा देने की भी कोशिश हुई थी जिसे AMU ने मानने से इंकार कर दिया था क्योंकि AMU को ये सेंटर्स 'सच्चर कमिटी' की रिपोर्ट के आधार पर मिले हैं हालाँकि अबतक महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश ने AMU के लिए ज़मीन मुहैय्या नहीं कराया है। पिछले दिनों MHRD मंत्री स्मृति ज़ुबिन ईरानी ने साफ़ कर दिया था कि वित्तीय कमी के चलते AMU के पुने (महाराष्ट्र) और भोपाल (मध्यप्रदेश) कैंपस नहीं खोले जा सकते।
सनद रहे कि UGC एक्ट 1956 के अनुसार ही देश के विश्विद्यालयों को सेंट्रल, डीम्ड और स्टेट यूनिवर्सिटी का दर्जा मिलता रहा है। AMU को 1920 में ब्रिटिश हुक़ूमत ने सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया था जिसे पहली बार 1968 में तत्कालिक सरकार ने ख़त्म किया था। 1981 में इंदिरा गाँधी की सरकार ने वापस AMU को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया था जिसे एक बार फिर 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ये कहते हुए ख़त्म कर दिया कि 'AMU was set up by an act of parliament not by a minority community.' इतिहास गवाह है कि AMU के संस्थापक सर सैय्यद अहमद ख़ान हैं न कि इसे पार्लियामेंट ने  संविधान के एक्ट के अनुसार स्थापित किया है, ब्रिटिश पार्लियामेंट ने इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया जिसे भारतीय क़ानून ने, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, भी माना और सेंट्रल यूनिवर्सिटी होने की वजह से यूनिवर्सिटी का ख़र्च सरकार उठाती है। सिर्फ़ यूनिवर्सिटी का वित्तीय ख़र्च उठा भर लेने से AMU सरकार द्वारा, संविधान द्वारा स्थापित यूनिवर्सिटी हो गयी क्या? 2006 के बाद से AMU के Minority Status का मामला सुप्रीम कोर्ट में था और एक दसक बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी वही कहा जो 2006 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था। दरअसल केंद्र सरकार AMU को उसका हक़ देना ही नहीं चाहती, चाहे वो UPA हो या NDA, अगर UPA सरकार अल्पसंख्यकों की हितैषी है तो दस साल तक सत्ता में बने रहने के दौरान उसने AMU के अल्पसंख्यक दर्जे के हक़ को बहाल क्यूँ नहीं किया? NDA तो ख़ैर अल्पसंख्यक विरोधी है ही।
AMU को लेकर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ज़ुबिन ईरानी की समझ सबसे निम्न स्तर पर है। 1920 में ब्रिटिश पार्लियामेंट द्वारा 'सेंट्रल यूनिवर्सिटी' घोषित किये गए संस्थान को ये 'डीम्ड यूनिवर्सिटी' के नियम से हाँकना चाहती हैं। ईरानी जी के संघी नियम के हिसाब से AMU के 'ऑफ़-कैंपस' अवैध हैं जब्कि ये कैंपस 'सच्चर कमिटी' की शिफ़ारिशों के बाद खोले गए हैं और अबतक 5 कैंपस में से सिर्फ़ 3 कैंपस (केरल के मल्लापुरम, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और बिहार के किशनगंज में) ही खोले जा सके है और बाक़ी 2 कैंपस (मध्यप्रदेश के भोपाल और महाराष्ट्र के पुणे) के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। AMU के पुराने और नये किसी भी ऑफ़-कैंपस के लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं। पिछले दिनों केरल के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में गए डेलिगेशन के सदस्य और AMU के कुलपति को ईरानी जी ने अपमानित किया और मुख्यमंत्री को ये तक कह दिया कि मल्लापुरम कैंपस को दी गयी अपनी ज़मीन वापस ले लीजिये क्यूँकि सरकार के पास AMU के 'अवैध कैंपस' के लिए पैसे नहीं हैं। और अब ख़बर आ रही है कि कुलपति लेफ़्टिनेंट (रिटायर्ड) ज़मीरुद्दीन शाह को हटाने का ब्लू प्रिंट लगभग तैयार है।
BHU का भी एक ऑफ़-कैंपस उत्तरप्रदेश के मिर्ज़ापुर में है। हरियाणा के सोनीपत में IIT Delhi का एक ऑफ़-कैंपस है तो IIT Roorkee के दो ऑफ़-कैंपस सहारनपुर और ग्रेटर नोएडा में हैं लेकिन 'अवैध' सिर्फ़ AMU के ऑफ़-कैंपस ही हैं बाक़ी संस्थानों के नहीं। दरअसल कुछ महीने पहले संसद में ईरानी जी ने कहा था कि डीम्ड यूनिवर्सिटी के वो सभी ऑफ़-कैंपस अवैध हैं जो मंत्रालय के बिना अनुमति और NOC के खोले गए हैं और इस लिस्ट में BIT, TISS, ISM और कई अन्य शिक्षण संस्थान के कैंपस शामिल हैं और यही नियम ईरानी जी AMU पर थोपना चाहती हैं। ये हमारा दुर्भाग्य है कि जिसे डीम्ड और सेंट्रल यूनिवर्सिटी में फ़र्क़ नहीं पता उसे हमारे सर पर HRD मंत्रालाय का मुखिया बना कर थोप दिया गया है।
एक दो ज़ख्म नहीं, जिस्म है सारा छलनी
दर्द बेचारा परीशाँ है, कहाँ से उट्ठे??

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-    नैय्यर इमाम सिद्दीक़ी