सुबह ही सुबह किसी ने
मुझे झंझोड़ के उठाया – अमाँ यार उठो, नमाज़ नहीं पढ़नी क्या तुम्हें? मैं जल्दी से
उठा तो देखा रावण भाई मेरे पैताने बैठे हुए थे. मैं घबरा के पूछा, आज इधर कैसे और
वो भी इतनी सुबह? पहले तुम नमाज़ पढ़ आओ, फिर बात करते हैं. आँख मसलते हुए मैंने घड़ी
देखी, सुबह के 04: 30 हो रहे थे. थोड़ी देर में अज़ान होने वाली थी. मैंने बिस्तर के
उठ के मुहँ धोया, वज़ू किया और बाद नमाज़ क़ुरान की तिलावत की और वापस आ के पूछा,
‘हाँ ! अब कहों, आज कैसे याद किया?’
‘‘क्या क्या सितम उसने
किये जान पे मेरी, क्या बात है वो फिर भी सितमगर नहीं लगता’’ – दीवार से टेक लगाए
मेरे सवाल के जवाब में उसने शे’र सुनाया. मैंने कहा क्या बात है आज बहुत शायराना
मूड में हो. इधर मैं सुलगा पड़ा हूँ और तुम्हें मस्ती सूझी पड़ी है, उसने गुस्से से
अपना नाक फुलाया. अच्छा चलो अब मस्ती नहीं, सीरियसली बताओ क्या बात है जो सुलगे पड़े हो?
यार, ये बताओ कि मैंने
ऐसा क्या किया है जो हर साल जलाया जाता हूँ और राम ने ऐसा क्या किया है जो सदियों
से पूजा होती आ रही है उसकी? देख भाई, ये ‘इंटर रिलिजन’ सवाल मत पूछ, बहुत लफड़ा
होता है इधर मेरे देश में दुसरे के धर्म के बारे में बोलने पर. देख, तू कन्नी मत
काट, सीधे-सीधे जवाब बता. भाई, पहले तू अपना पक्ष, अपनी दलील रख तभी मैं निष्पक्ष
फ़ैसला कर पाउँगा.
मतलब तू चाहता है आज मैं
फिर से एक बार इतिहास, भूगोल उलट-पुलट करूं. मेरे दस सिर हैं फिर भी मेरी
याद्दाश्त थोड़ी कमज़ोर है. जितना याद है उसके मुताबिक़ तुम्हारा आज के दक्षिण भारत का
कुछ भाग भी तब मेरे राज्य के अधीन था. राम अपनी पत्नी एवं भाई लक्ष्मण के साथ
वनवास काट रहे थे और उस वक़्त मेरे राज्य के जंगल में विचरण कर रहे थे. ‘फेयर एंड
लवली’ लगाने वाले देश के दो जवान युवक देख कर वो उनपर मोहित हो गयी, हालाँकि उनका
रंग हमारे देश के जवानों से थोड़ा सा ही हल्का रहा होगा, पर वो बात तो सुना होगा न
कि दिल लगा दीवार से तो.... जिस देश में कृष्ण और राधा नें ‘अपने अपने’ ‘’साथी’’
को छोड़ ‘लिमिटलेस’ प्यार किया उसी देश के युवकों नें मेरी बहन के प्रणय निवेदन का
मज़ाक़ बनाया और लगे दोल्हा-पाती खेलने. एक कहता दुसरे से कर लो, दूसरा कहता पहले से
कर लो. कृष्ण ने तो कई हज़ार पटरानियाँ रखी थी, अगर राम और लक्ष्मण एक पत्नी
‘ज़्यादा’ रख लेते तो मेरे जंगल में कुटिया रखने के लिए ज़मीन थोड़े न कम पड़ जाती?
मेरी बहन राजकुमारी थी फिर भी ‘’लीगली’’ ‘दूसरी पत्नी’ बनने को तैयार थी लेकिन उन
दोनों को दोल्हा-पाती खेलते खेलते जाने कब और क्यूँ गुस्सा आया कि एक ने मेरी बहन
के नाक-काट लिए. मेरी बहन रोते क़िले में आई और सारा माजरा कह सुनाया. तुम बताओ सब
जान के कौन सा भाई होगा जिसका खून नहीं खोलेगा? माना कि तब चुनाव नहीं होते थे
लेकिन रजा को भी अपना दबदबा बना के रखना पड़ता है, वरना मेरा भाई कब तख़्ता पलट
देता, क्या भरोसा? तुम्हें तो पता ही है कि गुस्से में मेरा ख़ुद पे कंट्रोल नहीं
रहता, दस दिमाग़ की बात कैसे समझता. न आगा देखा ना पीछा. राम और लक्ष्मण को छकाने
के बाद मैंने सीता का हरण कर लिया. उन्हें अशोक वाटिका में नेचुरल ऐ.सी में रखा,
कभी हाथ नहीं लगाया. राम वनवास समाप्ति के बाद राजगद्दी पर बैठते, मैं भी रजा था,
हमारी भाषा अलग थी, उन्हें मामला बहुभाषीय के ज़रिये सुलझाना चाहिए था. मैंने सीता
का हरण सिर्फ़ इसलिए किया था कि पता चले कि स्त्री कि इज़्ज़त कितनी नाज़ुक होती है,
ये खेलने कि नहीं सम्मान कि हक़दार होती है लेकिन वो बातचीत करने नहीं आए. हनुमान
के ज़रिये मेरे राज्य में ‘घुसपैठ’ करा दिया. मेरे जंगल से बिना मेरी इजाज़त पेड़
काटे, पत्थर उखाड़े, मिटटी काटी और पुल बनाया. जिसका पर्यवारनणीय ख़ामियाज़ा हमने पिछले
दसक में सुनामी के रूप में भुगता. पूल बना कर हनुमान मेरे महल तक आये लेकिन संवाद
करने नहीं, शाजिश करने. सीता को महल से भगाने के लिए उसने शाजिश रचा और जब हमारे
सैनिकों ने रोकना चाहा तो मेरी सोने की लंका को कोयले की लंका में बदल दिया.
तुम्हारे सोने जैसी चिड़िया देश को अंग्रेज़ों ने लूटा तो आज तक तुम लोग उन्हें गाली
देते हो, मेरी लंका हनुमान ने फूंक दी फिर भी हमारे वंशजों ने कभी किसी बानर को
गाली नहीं दिया ना ही किसी भारतीय को क्यूँकी हनुमान का नेतृतव तो भारतवंशी राम ही
कर रहे थे. उल्टा हमने अपने जंगलों में बानरों को रहने का ‘परमिट’ जारी किया. राम
ने मेरे साथ विश्वासघात किया, मेरे भाई-भतीजे, और बेटे को वारगालाया, ‘सत्ता’ में
‘गठबंधन’ का लालच दे कर मेरे ख़िलाफ़ युद्ध के लिए उकसाया और मेरा ‘वध’ कर दिया.
युद्ध में वो सब भी मारे गए लेकिन छल-कपट से जीता गया युद्ध राम को ‘भगवान’ बना
गया और मुझे ‘दानव’. (हालाँकि भारत में भगवान का कॉपीराईट ‘ब्राह्मण खानदान’ के
पास है फिर क्षत्रिय खानदान में भगवान कैसे पैदा हो गए?) युद्ध उपरान्त भारत लौटते
समय वो मेरा पुष्पक विमान तक उठा ले गए. जिस सीता के लिए मेरी सवर्ण नगरी जला दी,
मेरा खानदान बर्बाद कर दिया उसी सीता को गर्भ की हालत में त्याग का दिया राम ने और
‘मर्यादा पुरषोत्तम’ का ‘मैडल’ जीत लिया. जो हनुमान अपना सीना चीर के ये दिखा सकता
है कि मेरे सीने में राम, सीता और लक्ष्मण हैं वो सीता के अग्नि परीक्षा के वक़्त
चुप क्यूँ रहा? सीता कि शुद्धता की गवाही क्यूँ नहीं दी उसने? जिसने सीता के धोका
किया उसी का मंदिर सबसे ज़्यादा है तुम्हारे देश में, जिसने सीता कि अग्नि परीक्षा
ली उसके मंदिर के नाम पे ‘सत्ता का ख़ूनी खेल’ खेला जाता है लेकिन जिसने सारा सितम
हँस के सहा उसके कितने मंदिर है तुम्हारे यहाँ? मैंने सारी बेईमानियाँ बर्दाश्त इसलिए
की के मेरे दहन के बहाने ही सही सीता को याद तो किया जाएगा, लेकिन सीता ‘बैकफूट’
में चली गयी और राम ‘फ्रंट फूट’ में आ गए. ये सारा सितम भी मैंने गवारा किया लेकिन
कल शाम सुभाष मैदान में मैं अपने दहन से पहले ही सुलग चूका था. मैं लाख बुरा सही,
लेकिन मैंने मजलूमों का खून नहीं बहाया, गर्भवती महिलाओं का गर्भ चीर के उनके बच्चों
को तलवार पे ले के नहीं घूमा, मैंने बलात्कार नहीं किया, मैंने बच्चों को नहीं
मारा, इंसानों को ज़िन्दा नहीं जलाया, किसी कि जासूसी नहीं की, अपनी पत्नी को पत्नी
सुख से वंचित नहीं किया, उसे परित्यक्त नहीं किया लेकिन ये सभी कर्म करने वाला और
कराने वाले इंसान ने जब मेरे दहन के लिए धनुष-बाण उठाया तो ऐसा लगा कि आज रावण
ज़िन्दा हो गया, राम मर गया.
मैंने अपनी सदियों लम्बी
कहानी ‘कॉम्प्रेस’ कर के तुम्हें सुना दी, अब सुनाओ अपना निष्पक्ष फ़ैसला. भाई रावण
मेरे हिसाब से तुम ही सही हो, लेकिन मेरे फ़ैसले से मेरे देश में बवाल हो जाएगा,
लोग मुझे ही ‘आतंकवादी’ घोषित कर देंगे इसलिए मैं अपना फ़ैसला सुरक्षित रखता हूँ और
ये वादा करता हूँ कि आज से किसी को ‘रावण दहन’ की बधाई नहीं दूँगा. तुम जबतक
जियोगे राम को जीना पड़ेगा, यही तुम्हारी जीत है.
No comments:
Post a Comment