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“बिल्ली को किस भाषा में ‘गातो’ कहते हैं”?
नींद से बोझल आँखों को मसलते हुए उसने अँधेरे में
उस आवाज़ को टटोलने की कोशिश की जिसने उसे ठिठुरती सर्दी की गर्म रात में ख़ुबसूरत नींद
से जगाया था.
बोलो ! “बिल्ली को किस भाषा में ‘गातो’ कहते हैं”?
नानू ! आपको भी आधी रात का ही वक़्त सूझता है सबक़ पूछने के
लिए? आवाज़ पहचानते ही उसने गर्म
लिहाफ़ के अन्दर से कसमसाते हुए कहा. मैं तो सबक़ सुनाने के लिए देर रात तक आपकी स्टडी में आपका इंतज़ार
करता रहा पर आप आए ही नहीं तो मैं सोने चला आया.
मैं आधी रात में सवाल इसलिए पूछता हूँ कि इस वक़्त ज़हन बिलकुल
साफ़ और शांत होता है. इस वक़्त ज़हन पर जो कुछ भी उकेरा जाता है वो पत्थर की लकीर की तरह अमिट
हो जाता है, समझे ! अच्छा, ये बताओ फ़ारसी का
सबक़ याद हुआ या नहीं?
उसने करवट बदलते हुए कहा, हाँ ! याद हो गया है नानू.
तो फिर ये बताओ कि ‘कुलाहे मन स्याह अस्त’ का उर्दू तर्जमा क्या
होगा?
नानू ! इस बार उसने लिहाफ़ से ज़रा सा मुँह बाहर निकाल कर
कहा, – ‘सब याद है पर अभी सब कुछ गुडमुड सा है. सुबह नाश्ते के वक़्त आपको सब कुछ सुना
दूँगा.
अच्छा, तो अब तुम आराम से सो जाओ, सुबह नाश्ते के वक़्त
मिलते हैं. नानू ने उसके गाल थपथपाते हुए उसके माथे पर बोसा दिया और लिहाफ़ ठीक से
ओढ़ने की ताकीद करते हुए कमरे से बाहर निकल गए.
***
सुबह 8:30 बजे नाश्ते की टेबल पर सभी घरवाले इकट्ठे थे.
छोटे मियाँ को हलवे के साथ बेमुरव्वती से इंसाफ़ करते देख अब्बा ने कहा कि, - ‘इतनी
जल्दी क्या है, आराम से खाओ. हलवा कहीं भागा तो नहीं जा रहा.’ छोटे मियाँ भला कब
चुप रहने वाले थे, तपाक से बोले, - ‘हलवा तो बेशक यहीं होगा, लेकिन आप ऑफ़िस चले
जायेंगे. कई रोज़ से आप मेरी चीज़ें लानी भूल जा रहे हैं. आज तो मैं आपके साथ ही
चलूँगा. आप दुकान से मुझे मेरी चीज़ें दिलवा देना, फिर मैं घर वापस आ जाउँगा.’
अब्बा ने घड़ी देखते हुए कहा, - ‘छोटे मियाँ ! आज तो माज़रत,
आज कुछ ज़रूरी काम है, फिर कभी हम आपको साथ लिए चलेंगे. या आप यूँ करें कि आपने जो
चीज़ें बाज़ार मँगवानी है उनकी लिस्ट बना लीजिए, मैं कल दफ़्तर से वापसी के वक़्त लेता
आऊँगा.’
हाँ ! ये ठीक रहेगा. क्यूँ छोटे मियाँ? नानू ने गाजर के
हलवे की तश्तरी अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा.
छोटे मियाँ ने कुछ भी बोलने से गुरेज़ किया और बस अपनी कंचे
जैसी हरी आँखें मटका दीं.
नानू ने मक्खन लगा फ़्रेंच टोस्ट और ऑमलेट छोटे मियाँ की तरफ़
बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कुलाहे मन स्याह अस्त” का उर्दू तर्जमा क्या होगा?
छोटे मियाँ ने टोस्ट कुरकुराते हुए ऑमलेट का एक टुकड़ा तोड़
कर मुँह में रखा और इत्मिनान से कहा, -‘मेरी टोपी काली है’
शाबाश ! नानू ने ख़ुश होते हुए कहा. ऐसे ही मन लगा कर सबक़
याद करना चाहिए. अच्छे बच्चे कभी अपना सबक़ नहीं भूलते. और सबक़ हमेशा याद रहे इसके
लिए बच्चों को चाहिए कि हर सुबह एक ग्लास दूध ज़रूर पिएँ. आप दूध पियेंगे न छोटे
मियाँ?
हाँ ! आज छोटे मियाँ ने बिना किसी हुज्जत के ही हथियार डाल
दिए थे.
नानू ने दूध का ग्लास छोटे मियाँ की तरफ़ बढ़ाते हुए पूछा,
-“बिल्ली को किस भाषा में ‘गातो’ कहते हैं”?
छोटे मियाँ ने दूध का घूँट भरते हुए कहा, - ‘इटालियन में’.
बिलकुल सही जवाब ! और बिल्ली की वैसी ही मूंछें होती है
जैसी अभी छोटे मियाँ की बनी हुई हैं. सबकी नज़रें एक साथ छोटे मियाँ की तरफ़ उठीं और
कमरा ठहाकों से गूंज उठा. सबको ख़ुद पे हँसते देख छोटे मियाँ शरमाते हुए उठे और
हथेली की पीठ से अपने होंठ साफ़ करते कमरे से भाग खड़े हुए.
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छोटे मियाँ नानू के स्टडी में कबसे गुमसुम बैठे हुए थे.
कहाँ तो वो अपने अब्बा हज़ूर को अपने लिए रोज़ दर्जनों चीज़ों के नाम गिनवा देते थे
पर जब लिस्ट बनाने की बात आई तो बहुत सोचने के बाद भी कुल जमा आठ नाम. एक क्रिकेट
बैट, एक जस्ता काग़ज़ लाइन वाली, एक सफ़ेद, एक स्केल, रंगीन पेंसिल, रंगीन रिबन,
रंगीन काग़ज़ और गोंद. पेंसिल का पिछला हिस्सा चबाते हुए छोटे मियाँ यही सोचे जा रहे
थे कि क्या हम बच्चों के लिए बाज़ार में ज़्यादा चीज़ें नहीं बिकतीं? अब्बा और अम्मी
तो थैले भर-भर के चीज़ें ले आते हैं और मेरे लिए बस आठ ही चीज़ें. क्या बाज़ार की सारी चीज़ें
सिर्फ़ बड़ों के लिए ही होती हैं? हमारा भी तो कितना मन करता है ढेर सारे खिलोने
ख़रीदें, अच्छी-अच्छी गाड़ियाँ ख़रीदें. मज़े-मज़े की चीज़ें खायें पर हमें तो हर बात पर
अम्मी-अब्बा टोक दिया करते हैं कि फलाँ चीज़ सेहत के लिए अच्छी नहीं तो फलाँ चीज़
मेरे लिए, गोया उन्हें मेरी कितनी फ़िक्र है. अगर उन्हें मेरी इतनी ही फ़िक्र है तो
मेरे लिए बाज़ार से ढेर सारी चीज़ें क्यूँ नहीं ले आते?
शायद पेंसिल के पिछले हिस्से में कोई विटामिन होती होगी तभी
तो हर कोई सोचते वक़्त पेंसिल का पिछला हिस्सा चबाता है और उसले अपने मसले का कोई न
कोई हल मिल ही जाता है. पेंसिल चबाते-चबाते छोटे मियाँ को भी आईडिया आ ही गया. वो
दौड़े-दौड़े नानू के पास गए और कहा, - ‘नानू क्या आप मुझे एक अठन्नी दे सकते हैं,
अम्मी तो पैसे देंगी नहीं.’
नानू ने किताब को उल्टा कर के अपने सीने पे रखते हुए आँखों
से चश्मा हटाया और बोले, - ‘हाँ ! मैं आपको एक क्या दस अठन्नी दे सकता हूँ, पर आप
अठन्नी का करेंगे क्या?’
‘नानू मैं पास वाले नुक्कड़ पे जाउँगा और वहाँ जो दुकानें
हैं न, मैं वहाँ से अपनी पसंद की ढेर सारी चीज़ें ख़रीदूँगा’
‘अच्छा ! नानू ने मुस्कुराते हुए कहा’, और तकिये के नीचे से
एक अठन्नी निकाल कर छोटे मियाँ को जल्दी आने की ताकीद करते हुए पकड़ा दिया. पैसे
मिलते ही छोटे मियाँ ख़ुश हो उठे और इठलाते हुए नुक्कड़ की तरफ़ चले जो उनके घर से महज़ 10-20 क़दम
की दूरी पर ही था, मगर छोटे मियाँ के क़दम से हिसाब से नुक्कड़ शायद 40-50 क़दम दूर
हो.
दूकान पर पहुँचते ही छोटे मियाँ ने कहा, - ‘अंकल ! मुझे एक
पतंग दे दीजिये.’
‘लेकिन...बेटा, आप इतने छोटे हो कि आप पतंग नहीं उड़ा पाओगे,
आप कोई टॉफ़ी क्यूँ नहीं ले लेते? नहीं मुझे टॉफ़ी नहीं पतंग चाहिए.’
‘पर...आप से पतंग उड़ नहीं पायेगी बेटा, आप पतंग उड़ाने के
लिए अभी बहुत छोटे हो.’ ये सुनते ही छोटे मियाँ मायूस हो गए और अठन्नी हथेली में
दबाए घर की तरफ़ मुड़ गए. अभी 10-12 क़दम ही चले होंगे की रस्ते में एक बच्चा मिला जो
बुरी तरह काँप और सिसक रहा था. छोटे मियाँ ने उस से पूछा कि दोस्त तुम रो क्यूँ रहे
हो, और इतना काँप क्यूँ रहे हो?
‘मुझे चार दिन से बहुत तेज़ बुखार है, घर में इतने पैसे नहीं
कि मेरी दावा आ सके, इसीलिए मैं यहाँ धूप में बैठा हूँ’ – बच्चे ने कहा.
‘धूप में बैठने से क्या तुम्हारी तबियत ठीक हो जाएगी?’ –
छोटे मियाँ ने हैरत से पूछा.
‘नहीं ! तबियत तो ठीक नहीं होगी, पर मुझे कंपकंपी से थोड़ी
राहत मिल जायेगी.
‘अच्छा, क्या तुम नुक्कड़ तक मेरे साथ चल सकते हो? मेरे पास एक
अठन्नी है, मैं उससे तुम्हारे लिए दवाई ख़रीद दूँगा.’
बीमार बच्चे ने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप छोटे मियाँ के पीछे
चलने लगा. नुक्कड़ पर पहुँच कर छोटे मियाँ ने अपनी अठन्नी दुकानदार को देते हुए कहा
कि इसे बुखार है, आप इसे दवा दे दीजिये. दुकानदार अठन्नी देखते ही कहा कि इतने
पैसे में दवा तो नहीं मिल सकती. कम से कम दो रुपये हों तो मैं तुम्हें दवा दे दूँ.
छोटे मियाँ ने कुछ सोचते हुए कहा, - ‘मेरे पास तो महज़ एक
अठन्नी ही है, ये बेचारा बीमार है और काँप रहा है इसलिए धूप में बैठा रो रहा था.
कहता है कि धूप से कुछ राहत मिल जाएगी इसे. एक काम कीजिये, आप मुझे चार आने की एक
मिठाई और इसे चार आने की धूप दे दीजिये.’
छोटे मियाँ के इस मुतालबे पर बीमार बच्चा और दुकानदार दोनों
उनका मुँह देखने लगे जब्कि छोटे मियाँ तो अपने लिए मिठाइयाँ पसंद करने में मसरूफ़
थे.
~
- नैय्यर / 17-04-2015
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