Tuesday, 10 June 2014

लम्हे

कुछ लम्हों का कोई रंग नहीं होता, न ख़ुशी में धुप खिलती है है ना ग़म में परछाई. ये लम्हे कभी नहीं खिलते, इनडोर प्लांट की तरह. पौधों के पत्ते और जिस्म में सांस सिर्फ 'ज़िंदा' होने के सबूत भर हैंकुछ लम्हों का कोई रंग नहीं होता, न ख़ुशी में धुप खिलती है है ना ग़म में परछाई. ये लम्हे कभी नहीं खिलते, इनडोर प्लांट की तरह. पौधों के पत्ते और जिस्म में सांस सिर्फ 'ज़िंदा' होने के सबूत भर हैं.

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