जाने
क्यूँ आज सुबह से ही मेरी आँखों ने बरसने से इंकार कर दिया
है? हैरान तो मैं भी हूँ कि जो कभी गंगा-जमुना बनी रहती थीं वो अचानक से सरस्वती क्यों और कैसे हो गयीं? सुबह से कई बार हथेली के गुदाज़ हिस्से से
आँखों को रगड़ चूका हूँ पर दूर-दूर तक पानी का निशान नहीं है....पर
मेरी हथेली में तुम्हारा बरसों पहले
पूछा गया सवाल रेत की तरह चिपक गया है जो यादों की रौशनी पड़ते ही चमकने लगा और तुम्हारा सवाल इस रौशनी में कुछ और निखार सा गया है.
***
तुम्हारी
आँखों में हर वक़्त
इतनी नमी क्यूँ रहती है? क्लास ख़त्म होने के बाद जब मैं
सनोबर के पेड़ के
पास तुम्हारा इंतज़ार कर रहा था तब तुमने मेरी आँखों में झांकते हुए पूछा था और मैंने मुस्कुराते हुए बस इतना ही कहा
था कि आरज़ूओं,
ख़्वाबों, हसरतों, ग़मों और ख़ुशियों को ज़िंदा रहने के लिए नमी तो चाहिए न, बस इसीलिए मैंने इन सभी को अपनी पनीली
आँखों में जगह दे रखी है और मेरे
आँखों की नमी इस
बात की गवाह है कि ये सभी ज़िंदा हैं अपने रिश्ते की तरह, मेरी और तुम्हारी तरह.
तुमने मुँह बनाते हुए कहा था,
पता नहीं तुम क्या-क्या
बकते रहते हो मुझे तो कुछ समझ में नहीं आता? तब मैंने तुम्हें ‘सहर’ का ये शेर सुनाया
था...
आंसुओं की ज़बाँ तुमने समझी नहीं
हम तो बरसा किये बादलों की तरह
...और तुमने एक अदा से अपनी ज़ुल्फ़ों को यूँ झटका था कि तुम्हारा आधा चेहरा बादलों की ओट में हो गया और आधा मेरे
सामने. जिसे देख मुझे इक शेर याद आ गया था,
जाने किसने लिखा है पर उस वक़्त तो बिलकुल मेरे जज़्बे की
तर्ज़ुबनी कर रहा था.
रुख़सार पे ज़ुल्फ़ों को ये किस ने बिखेरा है
कुछ सिम्त तो रौशन है कुछ सिम्त अँधेरा है
...और शेर सुन तुमने अपने हाथ में पकड़ा किताब मेरे सर पे दे मारा और 'मुझे देर हो रही है, अब जाना होगा' के बहाने तुम शर्माती हुई वहाँ से चली
गयी और मैं तुम्हारे वजूद के
सहर में न जाने कब
तक वहीँ पेड़ से टेक लगाये खोया रहा.
***
पहली
बार मैंने तुम्हें
लाइब्रेरी की सीढ़ियों पे देखा था. अपनी सहेलियों के साथ खड़ी तुम किसी बात पर बेतहाशा हँस रही थी. धुप की शिद्दत से बचने के लिए तुमने चेहरे को ढक रखा था पर हिजाब के अंदर से
झाँकती तुम्हारी जुड़वाँ आँखें...उफ़्फ़्फ़्...तौबा ! इतनी बोलती
आँखें मैंने कम ही देखी हैं.
बेइख़्तियार किसी
का ये शेर मेरे लबों पे मचला और मैंने कॉपी पे तुम्हारी आँखों का प्रतिबिम्ब उकेरा और नीचे लिखा दिया...
लबो रुख़सार छुपा रखे हैं उसने हिजाब में
आँखें बता रही हैं वो बला की हसीन है
तुम्हारी
बेतहाशा बोलती
आँखों के सामने मैं अक्सर बे बस हो जाया करता था,
हालाँकि मैं अपने ग्रुप में बहुत ज़्यादा बोलने
वाला समझा जाता था पर तम्हारी आँखों
के सामने मेरे
होंठों पे चुप की मुहर लग जाती थी. मुझे बस तुम्हें सुनना पसंद था और तुम मेरी ख़ामोशी पे खीज जाती. मैं तुमसे बारहा कहता कि तुम ही बताओ मैं तुम्हारी बोलती आँखों को जवाब
दूँ भी तो किस ज़बान में? और तुम अक्सर यही कहती कि तुम्हें बातें बनाने के अलावा भी कुछ आता हैं? और मैं मासूमियत से कहता, हाँ ! मुझे खाना बनाने भी आता है और तुम खिलखिला के हँस देती और मैं तुम्हारी हँसी के उन रेज़गारियों को सँभाल कर रखता जाता जो मेरे उदास और
तारीक दिनों में मेरा हौसला बढ़ाते.
***
मुलाक़ात
और मुहब्बत का
अंजाम जुदाई होता है ये जानते तो हम दोनों थे पर बिछड़ने का अज़ाब सहना इतना आसान भी तो नहीं होता न? जब साथ थे तो बात-बे-बात लड़ते-झगड़ते थे, महीनों बात नही करते थे, बस एक-दूसरे को घूर के रह जाते थे
पर फिर भी परवाह
तो थी ही और अब जब अलग होने की रुत आई तो आँखों में सैलाब का मंज़र, मानो जो कुछ हम ज़बान से नहीं कह सकते वो
आँसुओं ने एक दूसरे से कह
दी है .
आँसू हर मौसम के साथी होते हैं, ख़ुशी और ग़म दोनों मौक़ों पर ईमानदारी से वफ़ादारी निभाते हैं, पर आँसुओं के सहारे तो ज़िन्दगी
गुज़रेगी नहीं...सो
हमने आँसुओं पे सब्र का बाँध बना डाला और रुख़सत हो गए. ख़तों के ज़रिये एक लम्बे अरसे तक मिलते
रहे, पर कल मैंने तुम्हारी सालगिरह पे जो ख़त
भेजा था वो वापस आ गया है. उस ख़त में एक सफ़ेद
काग़ज़ का टुकड़ा भी था जिसपे मैं
मैंने पेंसिल स्केच से तुम्हारी आँखें बनायीं थी और राहत इन्दौरी
का एक शेर भी लिखा था...
झील अच्छा है,
कँवल अच्छा है या
जाम अच्छा है
तेरी आँखों के लिए बता कौन सा नाम अच्छा है ?
...जाने ख़त क्यों वापस आ गया? तुम वहाँ थीं नहीं या तुमने ख़त लेने से 'इंकार' कर दिया? या हमारे साझा आरज़ूओं, ख़्वाबों, हसरतों,
ग़मों और ख़ुशियों
के आधे हिस्से कि मौत हो गयी? या अब मुहब्बत मुहब्बत न रहके एक कसक में तब्दील हो गयी है? वजह जो भी हो आज सुबह से मेरी आँखों ने
बरसने से इंकार कर दिया है. जाने कौन मर गया और कौन ज़िंदा है? मारा तो शायद मैं ही हूँ क्यूंकि ज़िंदा
रहने के लिए यादों
की नमी चाहिए लेकिन मेरी आँखें सुबह से वीरान और बंजर हो रही हैं.
~
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नैय्यर / 08-05-2014
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