Tuesday 1 September 2015

फोन कॉल, चिप्स, कॉफ़ी ई.टी.सी.

- 'तो लोग पहुँच गए?' मेरे गला साफ़ करने वाली स्टाइल की नक़ल उतारने के बाद उसने सलाम करने के बाद खिलखिलाते हुए पूछा।
- 'कौन से लोग, मैं तो अकेला ही हूँ?' मैंने सलाम का जवाब देते हुए अनजान बनते हुए बेपरवाह अंदाज़ में कहा।
- 'पर उससे मिलने के बाद तो लोग दो हो गए हैं न?' सब ख़बर है मुझे वैसे, पर उसे कुछ पता नहीं कि लड़का कहाँ-कहाँ घूम रहा है?
- 'किसे?' मैंने अनजान बनते हुए पूछा जिसके जवाब में उसने कहा कि 'अरे वही आपकी...'
- 'पर वो तो फ़ेसबुक पर मुझसे जुड़ी ही नहीं है तो उसे कैसे ख़बर होगी मेरे आवारागर्दी के हरकतों की', उसका इशारा समझते ही मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
- 'आए-हाय! क्या बात है, उसका ज़िक्र आते ही लोग मुस्कुराने लगे।
- और क्या, वो है ही इस क़ाबिल। वैसे उसे मेरी हरकतों से आगाह रखो, मैं अच्छा लड़का हूँ कहीं उसके हाथ से निकल न जाऊँ? मैंने शरारत से कहा।
- 'और बताएँ'
- 'वापस कमरे पर जा रहा था की कॉल आया कि आपको मुझसे बात करनी है, सो मैं ख़बर मिलते ही आ गया आपसे बतियाने।'
- 'रहने दें, रहने दें! मिलने गए हैं किसी और से और बहाना मेरा। बातें बनाना कोई आपसे सीखे।'
- 'बात नहीं बना रहा मैं, सच कह रहा हूँ।' वैसे तुम इनबॉक्स में तो बहुत हड़काते रहती हो मुझे और फोन पर तो आवाज़ बिलकुल बच्चों जैसी है।
- 'हाय...! अरे इस लड़की ने मेरे भौकाल का फ़ालूदा निकाल दिया।' उसकी इस बात पर हम दोनों के ज़ोरदार कहकहे उबाल पड़े। हँसी रुकते ही उसने पूछा, वैसे है कहाँ ये लड़की?'
- 'कॉफ़ी बना रहा ही मेरे लिए' मोबाइल पर मैसेज चेक करते हुए कहा मैंने।
- 'मुझे फ़ोटो भेज दीजियेगा कॉफ़ी का'
- 'क्यूँ, कॉफ़ी का फ़ोटो किसलिए? मैंने हैरत से पूछा।
- 'मुझे देखनी है कि उसने आपके लिए कैसी कॉफ़ी बनाई है?'
- 'एक ही इंसान दो तरह की भी कॉफ़ी बनाता है क्या?'
- 'अरे वो बहुत घुन्नी है, दो लोगों के लिए दो तरह की कॉफ़ी बना सकती है। उसकी शकल पर मत जाइये। वैसे आज इतने दिनों बाद बात हो ही गयी अपनी, है न?' मुस्कुराते हुए उसने कहा।
- 'हाँ! हो तो गयी, पर दोस्ती की जड़ से बतियाना अभी तो बाक़ी ही है। ये तो डाली है।'
-'राइटर से बतियाने का यही फ़ायदा है, बात को कितनी ख़ूबसूरती से मोड़ देते हैं न?
- 'कौन राइटर, कहाँ का राइटर?
- 'आप, दिल्ली घूमने वाले राइटर।'
- 'इसलिए लोग ख़ुद से बतियाने से डरते हैं, आज बात भी कर रहे हैं तो दूसरे की वजह से।'
- 'आप बार-बार इससे मिलने आते रहा करिये मैं बतियाते रहा करुँगी आपसे।'
- 'ख़ुद फ़ोन करना तब बतियाना, अभी दूसरे का पैसा काट रहा है, वैसे भी हम बहुत देर से गपिया रहे हैं।'
- 'अरे आप उसके बैलेंस का टेंशन न लो, बहुत अमीर है वो। अच्छा, चलिए जब अगली बार आएँगे आप तब फिर बात करेंगे, इसी वादे के साथ हम दोनों ने एक दूसरे को ख़ुदा हाफ़िज़ कहा और कॉल डिसकनेक्ट कर दिया।'
-'क्या हुआ, फिर लड़ाई हो गयी क्या?' जब वो कॉफ़ी लिए आई तो मुझे चुप देख कर बेसाख़्ता पूछ बैठी।
- 'नहीं, लड़ाई नहीं हुई, बात ख़त्म हो गयी।'
- 'आप दोनों इतना लड़ते हैं न कि आप दोनों की चुप्पी से यही डर लगता है कि कहीं फिर तो नहीं लड़ बैठे।'
- 'हमारी दोस्ती ही ऐसी है।' और फिर हमदोनों कॉफ़ी और चिप्स से इंसाफ़ करते हुए कितनी देर बतियाते रहे पता ही नहीं चला। अचानक घडी पर नज़र पड़ी तो उसने चुपके से डेढ़ घंटे गुज़र जाने का एहसास दिलाया। कुछ देर और बात करने के बाद हम दोनों एक दूसरे को अलविदा कहते हुए अपने-अपने राह लगे।
~
- नैय्यर / 19-08-2015

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