Sunday, 11 May 2014



***_ माँ _***
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ये दुनिया
दुत्कारती है मुझे
मेरे नाम की वजह से
मेरे चेहरे की बनावट में ढूंढती है
ग़रीबी का पता कोई

मेरे कुरूप चेहरे
बहार निकले दाँत
और हकला के बोलने की बीमारी
ये सभी पहचान हैं मेरी
बहरी दुनिया वालों के लिए
उनके लिए जो अपनी
ज़रुरत और अपने फायदे के लिए ही
मजबूरन मिलते हैं मुझ से

फिर न जाने किस वजह से
मेरे चेहरे पे मुनाफा तौलते हैं
अपने नफ़रत के कारोबार का
उस चेहरे पे जिसपे कभी
बिला-ज़रुरत वो देखना भी गवारा न करें

ऐसी मतलबी और कुरूप दुनिया से
हर लम्हा मेरी 'माँ' की दुआएँ बचाती हैं मुझे
वो माँ जिसने मेरी सूरत देखे बिना
सींचा है मुझे अपने लहू से
और मेरी हर ऐब के उसने
छुपाया है अपने आँचल के तले

ऐसी माँ की क़दम-बोसी के लिए
सैकड़ों बार भेजता हूँ लानत मैं
ऐसी खुदगर्ज़ और नफरत से भरी
इंसानों की इस बदरंग दुनिया पर

~
© नैय्यर / 11-05-2014

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