लैपटॉप के एक पुराने से फ़ोल्डर में 8 फ़रवरी 2013 को लिखी मेरी एक अधकचरी कविता मिली है. तब मैं कितना बेकार लिखता था, वैसे अच्छा तो अब भी नहीं लिखता मैं
~
***_ मुहब्बत _***
============
तेरे नैनों के जलाशय में तैरते
आँसुओं की सतह पर
आस-व-निरास के हिंडोले में झूलते
तुम्हारे सवाल मेरे लिए अजनबी नहीं हैं
तुमने पूछा था कि मुझे तुमसे मुहब्बत है या नहीं ?
और...हाँ
मैंने कहा था कि मुझे तुम से मुहब्बत नहीं
पर...शायद
तुम मेरी तरह आँखें नहीं पढ़ पाती
हाँ...मैंने कहा तो था कि मुझे तुम से मुहब्बत नहीं
मगर
वो सिर्फ एक ख़ूबसूरत मज़ाक़ था
और तुमने एक ज़रा सी बात पे
आँखों को दरिया बना डाला था
मैं तो तुम्हारे आँसुओं से
अपनी मुहब्बत की लौ भड़काना चाहता था
और
तुम्हारी आँसुओं से लबालब आखें
इस बात की सबूत हैं
की "मुझे तुमसे मुहब्बत है"
क्यूंकि तुम्हारे आंसू मेरी अमानत हैं
जो बहते भी तो मेरी वजह से हैं
आओ
मैं तुम्हारे आँसुओं की
एक-एक बूँद का क़र्ज़ उतार दूं
तुझे फिर से मैं संवार दूं
तेरा अंग-अंग निखार दूं
तेरी आँसुओं के जाम को
मैं होंठों से चुन के सहार लूं
आ तेरे अधरों का मैं रसपान करूँ
पलकों से धो लूं ज़ख़्म तेरे
कुछ अपनी रूह पे एहसान करूँ
तेरे अंगों का मधुशाला पी कर
पागल दीवाना हो जाऊं
तेरे होंठों पे रखूं होंठ गर
तो जल के परवाना हो जाऊं
तेरी जुल्फों की घनघोर घटा में
बन के नाचूँ मैं मोर सनम
तेरा चैन चौरा के, नींद चुरा के
कहलाऊँ मैं चोर सनम
हैं और बहुत से प्यार भरे कुछ लापरवाह इरादे
पर डरता हूँ की तेरे आँसुओं में बह न जायें ये सारे
है तुझे से इतनी गुज़ारिश मेरे महबूब सनम
के अब कभी न टूटने पाए अपना भरम
मेरी खुशियाँ तेरी खुशियाँ
तेरे ग़म हैं मेरे ग़म
तेरी आँख में मेरे सपने
मेरे सपने तेरे सपने
जैसे सारे सपने हैं बस अपने
सपनों का तो कोई बंटवारा नहीं
फिर...
क्यूँ तेरी आखों को मेरी आखों की भाषा
लगती है अजनबी सी
जब भी तू मुझ से सवाल करे है
मेरा दिल मुझ से बवाल करे हैं
तू देख ले मेरी आँखों को
इनमे हैं बस तेरा ही अक्स
बस पढ़ नहीं पाती आँखें तेरी
क्यूंकि
तेरी आँखें हैं धुंधली धुंधली
और आँसुओं से भरी तेरी धुंधली आखें
भला कैसे देखेंगी
मेरी आँखों में तेरी लिए चाहतों के समंदर को
मेरी धडकनों को सुनो ज़रा
ये हर पल कहती रहती है
"मुझे तुमसे मुहब्बत है"
तो अब मेरी धडकनों को करार दो
मेरा सारा क़र्ज़ उतार दो
आ जाओ मेरी बाँहों में
मुझे बेइन्तहा प्यार दो
और आँसुओं कि नदी में
सारा बोझ उतार दो
~
© नैयर / 8 फ़रवरी-2013
~
***_ मुहब्बत _***
============
तेरे नैनों के जलाशय में तैरते
आँसुओं की सतह पर
आस-व-निरास के हिंडोले में झूलते
तुम्हारे सवाल मेरे लिए अजनबी नहीं हैं
तुमने पूछा था कि मुझे तुमसे मुहब्बत है या नहीं ?
और...हाँ
मैंने कहा था कि मुझे तुम से मुहब्बत नहीं
पर...शायद
तुम मेरी तरह आँखें नहीं पढ़ पाती
हाँ...मैंने कहा तो था कि मुझे तुम से मुहब्बत नहीं
मगर
वो सिर्फ एक ख़ूबसूरत मज़ाक़ था
और तुमने एक ज़रा सी बात पे
आँखों को दरिया बना डाला था
मैं तो तुम्हारे आँसुओं से
अपनी मुहब्बत की लौ भड़काना चाहता था
और
तुम्हारी आँसुओं से लबालब आखें
इस बात की सबूत हैं
की "मुझे तुमसे मुहब्बत है"
क्यूंकि तुम्हारे आंसू मेरी अमानत हैं
जो बहते भी तो मेरी वजह से हैं
आओ
मैं तुम्हारे आँसुओं की
एक-एक बूँद का क़र्ज़ उतार दूं
तुझे फिर से मैं संवार दूं
तेरा अंग-अंग निखार दूं
तेरी आँसुओं के जाम को
मैं होंठों से चुन के सहार लूं
आ तेरे अधरों का मैं रसपान करूँ
पलकों से धो लूं ज़ख़्म तेरे
कुछ अपनी रूह पे एहसान करूँ
तेरे अंगों का मधुशाला पी कर
पागल दीवाना हो जाऊं
तेरे होंठों पे रखूं होंठ गर
तो जल के परवाना हो जाऊं
तेरी जुल्फों की घनघोर घटा में
बन के नाचूँ मैं मोर सनम
तेरा चैन चौरा के, नींद चुरा के
कहलाऊँ मैं चोर सनम
हैं और बहुत से प्यार भरे कुछ लापरवाह इरादे
पर डरता हूँ की तेरे आँसुओं में बह न जायें ये सारे
है तुझे से इतनी गुज़ारिश मेरे महबूब सनम
के अब कभी न टूटने पाए अपना भरम
मेरी खुशियाँ तेरी खुशियाँ
तेरे ग़म हैं मेरे ग़म
तेरी आँख में मेरे सपने
मेरे सपने तेरे सपने
जैसे सारे सपने हैं बस अपने
सपनों का तो कोई बंटवारा नहीं
फिर...
क्यूँ तेरी आखों को मेरी आखों की भाषा
लगती है अजनबी सी
जब भी तू मुझ से सवाल करे है
मेरा दिल मुझ से बवाल करे हैं
तू देख ले मेरी आँखों को
इनमे हैं बस तेरा ही अक्स
बस पढ़ नहीं पाती आँखें तेरी
क्यूंकि
तेरी आँखें हैं धुंधली धुंधली
और आँसुओं से भरी तेरी धुंधली आखें
भला कैसे देखेंगी
मेरी आँखों में तेरी लिए चाहतों के समंदर को
मेरी धडकनों को सुनो ज़रा
ये हर पल कहती रहती है
"मुझे तुमसे मुहब्बत है"
तो अब मेरी धडकनों को करार दो
मेरा सारा क़र्ज़ उतार दो
आ जाओ मेरी बाँहों में
मुझे बेइन्तहा प्यार दो
और आँसुओं कि नदी में
सारा बोझ उतार दो
~
© नैयर / 8 फ़रवरी-2013
No comments:
Post a Comment