Monday 7 July 2014

याद

एक शायर था कभी
जो गुज़रते वक्तों के 
ज़र्रों के नीचे
दब के मर गया है कहीं
मगर कभी-कभी 
उसके लफ्ज़ 
जी उठते हैं
मेरी यादों के किसी कोने में
और ऐसा लगता है के जैसे
वो रत्ती भर ही सही
ज़िन्दा है मेरे अन्दर
.
.
.
ये वही तो है जो
मेरी शायरियों में ज़िन्दा है
और मैं ज़िन्दा हूँ
उसकी यादों में
~

© नैय्यर / 7-7-14

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