Monday, 2 February 2015

याद

शाम सर्दियों की
अब्र आलूद मौसम
मोती फुहारों की
कॉफ़ी का कप
और तुम्हारी याद का धुआँ
इन सब में इक अजब सा तिलिस्म है
और तिलिस्म के उस पार

.
.
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घटती कॉफ़ी और तुम्हारी यादों का ज़ायक़ा
दोनों बिलकुल एक सा है
कड़वा बहुत कड़वा
~
- नैय्यर / 22-01-2015

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