Tuesday, 3 February 2015

शहर-दर-शहर

जाने क्यूँ कुछ शहरों की क़िस्मत ननिहाल और ददिहाल की मुहब्बत सी होती है ! कुछ शहरें मनुहार कर के रोक लेती हैं तो कुछ दुबारा आने तक को नहीं कहतीं. पर...कुछ शहर तो बिलकुल तुम्हारी अदाओं जैसे हैं. तुम्हारी बेरुख़ी जोधपुर की गार्मी की तरह है तो तुम्हारा ‘ईगो’ सियाचिन ग्लेशियर की तरह. तुम्हारी ख़ुशी दिल्ली के चाँदनी चौक की तरह है तो तुम्हारी ख़ूबसुरती कश्मीर की तरह, और...पता है तुम में सबसे अच्छा क्या है?

क्या?

आमेज़न नदी की तरह बल खाती तुम्हारी कमर

आमेज़न की तरह ? पर, उसमें तो अनाकोंडा रहता है !

तुम्हारा गुस्सा किसी अनाकोंडा से कम है क्या?

~
- नैय्यर / 03-02-2015

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