Thursday, 17 April 2014

***_ लघु कथा / मौत _***
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"तुम मेरे बग़ैर जी तो लोगे न?" उसने अपना ट्राली बैग घसीट के गाड़ी में रखते हुए पलट के आख़री बार मुझसे पूछा। 

हाँ ! मरता तो मैं तुम पे तुम्हारी संगत में था। इंसान हमेशा अकेले ही जीता आया है, किसी पे मरने के लिए किसी का प्यार चाहिए। ज़िंदा रहने के लिए सांसों का साथ ही बहुत है। मैंने अशोक के पेड़ से टेक लगाये हुए कहा। 

पक्का? उसने हैरत से मुझे देखा। 

इस बार मैंने अपना सर 'हाँ' कि मुद्रा में हिलाया, मुँह से कुछ नहीं कहा।

तो फिर वाद करो...

मेरे पास देने के लिए सिर्फ़ मेरी जान थी जो मैं तुम्हें दे चूका हूँ। ज़िंदा लाश वादा नहीं किया करते।

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© नैय्यर / 18-04-2014 

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