Friday 11 April 2014

***_ गणित रिश्तों का _***
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समय के वृत चक्र में
एक दूसरे से जुड़े हैं हम
अलग-अलग केंद्र बिंदु से

तुम ने खींच के एक लकीर
कहा था त्रिज्या जिसे कभी 
व्यास बन गया है अब वो समय के साथ

उलझे हुए उसी व्यास को आधार मान 
नाप रहा रहा हूँ अपने रिश्ते की परिधि
जिसके क्षत्रफल में मैं कहीं हूँ ही नहीं

त्रिशंकु सा है शायद अपना रिश्ता
जिसकी एक भुजा तो मैं हूँ और दूसरी तुम
और 'अना' है जिसकी तीसरी भुजा

उसी 'अना' नें दोनों भुजाओं को
जोड़ रखा है एक ऐसे कोण से
जो हमें विभाजित नहीं होने देता एक सा

रिश्ते बराबरी के हक़दार होते हैं
और गणित समीकरण का मोहताज
और मैं केंद्र बन गया हूँ दोनों का

तुम मेरे कोण को समझती ही नही, और 
न ही आ पाती हो समीकरण के खेल में
बस ! घूम रहे हैं अपनी-अपनी धुरी पर हम दोनों

~
© नैय्यर / 11-04-2014

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