Wednesday 12 March 2014

'सर सैयद डे' के मौक़े पे मेरी बरसों पुरानी तुकबंदी, जिसे मैंने 2004 में लिखा था तब मैं स्नातक का छात्र हुआ करता था। मैंने अपनी ये तुकबंदी 'अब्दुल्लाह गर्ल्स हॉस्टल' के वार्षिक सांस्कृतिक प्रोग्राम (2004) में प्रस्तुत किया था और इतनी ज्यादा हूटिंग हुई कि मैंने फिर आज तक फिर दुबारा कभी किसी गर्ल्स हॉस्टल में अपनी ग़ज़ल नहीं सुनाई। 

...तो मज़ा लीजिये आज के मुशायरे में मेरी तुकबंदी का 

हम मिले तुम मिले रात में
ख़ुशबू बस गयी है जज़्बात में

मैं कुछ कह रहा था शायद
रुख़ बदल गयी बात ही बात में

तुमको ढुंढा मैंने चहार सू
पर न देखा कभी अपनी ज़ात में

जब से तुम समा गयी हो दिल में
दिल ही रहने लगा है घात में

उम्र-ए-फानी का क्या ठिकाना 'नैय्यर'
ला दे अपना हाथ मेरे हाथ में

~
चहार सू = चारों तरफ
~
Naiyar Imam 'नैय्यर'

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