***_ रेज़गारी _***
============
समय के कछार में
यादों से ज़रा परे
करवटों के निशान पर
बिखरी पड़ी हैं कुछ सलवटें
उन्हीं सिलवटों के आगोश में
तुम्हारे संग बिताये लम्हों कि
कुछ रेज़गारी पड़ी है
जो दिल में तेरी याद के सावन से
खनक जाती हैं
दर्द के आँसुओं में तप कर
कुछ सिक्के चमक उठते हैं चाँद सा
और मेरी आँखें बन के चकोर
तुम्हारे दर्पण को तका करती हैं
कि शायद सिक्कों पे लिखावट के उभार सा
तुम्हारे चेहरे पे मेरा नाम लिखा है के नहीं
पर मैं हमेशा भूल जाता हूँ
कि मेरे हिस्से में कोरे सिक्के ही आये हैं
जो वफादारी के बाज़ार में नहीं चलते
और दौलत के बाज़ार में इंसान बिका करते हैं
प्रेमी नहीं
और मैं तुम्हारा प्रेमी
कब से गुमसुम हूँ इस ख्याल में
कि मैं बेमोल तेरे प्यार में बिका कैसे ?
~
- नैय्यर / 22/02/2014
============
समय के कछार में
यादों से ज़रा परे
करवटों के निशान पर
बिखरी पड़ी हैं कुछ सलवटें
उन्हीं सिलवटों के आगोश में
तुम्हारे संग बिताये लम्हों कि
कुछ रेज़गारी पड़ी है
जो दिल में तेरी याद के सावन से
खनक जाती हैं
दर्द के आँसुओं में तप कर
कुछ सिक्के चमक उठते हैं चाँद सा
और मेरी आँखें बन के चकोर
तुम्हारे दर्पण को तका करती हैं
कि शायद सिक्कों पे लिखावट के उभार सा
तुम्हारे चेहरे पे मेरा नाम लिखा है के नहीं
पर मैं हमेशा भूल जाता हूँ
कि मेरे हिस्से में कोरे सिक्के ही आये हैं
जो वफादारी के बाज़ार में नहीं चलते
और दौलत के बाज़ार में इंसान बिका करते हैं
प्रेमी नहीं
और मैं तुम्हारा प्रेमी
कब से गुमसुम हूँ इस ख्याल में
कि मैं बेमोल तेरे प्यार में बिका कैसे ?
~
- नैय्यर / 22/02/2014
No comments:
Post a Comment