Sunday, 16 March 2014

***_ होली _***
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ऐसा लगता है के जैसे
रंग सारे इंद्रधनुष के
घुल गए हों ज़ात में तेरी

उजली-उजली तेरी रंगत
हो चाँदनी की जैसी संगत
होंठ पे हैं थिरके रंग कत्थई
यूँ शाम बिखराये रंग सुरमई

तुम हँसो तो रुत गुलाबी
हो जाये मौसम भी शराबी
तेरी ज़ुल्फ़ों से खेलें घटायें
जैसे हम तुम्हें कभी सताएं

तेरे नैनों की ज्योति नीली-पीली
जैसे फूलों पे कोई तितली अकेली
तेरे आँचल में जादू परियोंवाली
जैसे फ़ज़ा हो कोई हरियाली

हो कोई तुम किरदार अंजानी
या मुझ में घुलता रंग आसमानी
क्यूँ छू लिया है तुमने लब से आसमाँ
सिंदूरी सा लग रहा आज सारा समाँ

आ बैगनी आसमान ओढ़ कर
ज़माने के रस्म सारे तोड़ कर
मेरे लब से अपने लब ज़ाल कर
प्यार से तू मेरे लब लाल कर

तू है, रंग है और जवाँ उमंग
पिचकारी मरेंगे आँखों से संग
घोल दे तू मुझमें अपने सारे रंग
बजने दे अब जिस्म का मृदंग

~
- © नैय्यर /16-03-2014


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