Wednesday, 12 March 2014

"दंगा"

(मुज़फ़्फ़रनगर दंगे से आहात हो कर )

जो खून बहा है सड़कों पर
वो खून बता अब किसका है?
जैसे इंसानों को बांटा तूने
वैसे अब खून का भी बंटवारा कर

'मुस्लिम' का है खून 'हरा'
या 'हिन्दू' का है भगवा 'जैसा'
मानव रक्त पीने वालों 
खून का भी तो कोई 'धर्म' बताओ

धर्म के नाम पे 'जल्लादों' ने
इंसानियत का क्यूँ 'बलात्कार' किया?
'कुर्सी' के लालंच में 'दलालों' ने
खून को भी है शर्मसार किया

संसद में पास किया 'खाद्य बिल'
और तुम 'भोग' रहे इंसानों को
धर्म की 'सीढ़ी' चढ़ा कर संसद में
हम भेज रहे 'राक्षस' और 'हैवानों' को

रक्तरंजित धरती पर
'नफरत' की फसल लहलहाती है
चुनाव के बाज़ार में जो
'वोट' के दाम बिक जाती है

अब के बरस भी धरती को
चढ़ाई है इंसानियत की 'बलि'
अब के बरस भी
खून बहा है उम्मीदों से कहीं ज़्यादा
अब के बरस भी नफरत की 'फसल'
लहलहाएगी उम्मीद से थोड़ी और ज़्यादा

और ...
अब के बरस भी
अपने अपने हथियारों को
खून से हम लाल करेंगे
'भगवा' और 'हरे' के चक्कर में
'इंसानियत' को 'शर्मसार' करेंगे !


© नैय्यर / 08-09-2013 

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