***अलाव***
जब से तुम गए हो
कुछ लिख ही नहीं पाता
मेरी ज़िन्दगी कोरे काग़ज़ कि तरह हो गयी है
क़लम है के ख़ामोश है
और दिमाग़ कि बस
लफ्ज़ ही ढूँढता रहता है
और दिल
दिल का क्या कहूं
इस में तुम बन के हुक समाई हो
लबों पे हैं एक तवील ख़ामोशी
और आँखों में पसरी है वीरानी
और ख्यालों में
न टूटने वाला सन्नाटा
ऐसा लगता है जैसे
मैं इंसान नही
कोई सुनसान खँडहर हूँ
जो फिर से बसना चाहता है हवेली बन कर
तो
बस इतनी सी इल्तिजा है
लौट आओ मेरी दुनिया में वापस
सर्दी में जलते अलाव कि तरह
क्यूंकि
दूर रह के जलने से से अच्छा है कि
पास रह के नफरत कि आग को सुलगाये रखें
बोलो
वापस आओगी न?
© Naiyar Imam Siddiqui / 17-12-13
जब से तुम गए हो
कुछ लिख ही नहीं पाता
मेरी ज़िन्दगी कोरे काग़ज़ कि तरह हो गयी है
क़लम है के ख़ामोश है
और दिमाग़ कि बस
लफ्ज़ ही ढूँढता रहता है
और दिल
दिल का क्या कहूं
इस में तुम बन के हुक समाई हो
लबों पे हैं एक तवील ख़ामोशी
और आँखों में पसरी है वीरानी
और ख्यालों में
न टूटने वाला सन्नाटा
ऐसा लगता है जैसे
मैं इंसान नही
कोई सुनसान खँडहर हूँ
जो फिर से बसना चाहता है हवेली बन कर
तो
बस इतनी सी इल्तिजा है
लौट आओ मेरी दुनिया में वापस
सर्दी में जलते अलाव कि तरह
क्यूंकि
दूर रह के जलने से से अच्छा है कि
पास रह के नफरत कि आग को सुलगाये रखें
बोलो
वापस आओगी न?
© Naiyar Imam Siddiqui / 17-12-13
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